कनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotram) शंकराचार्य – गीता प्रेस PDF In Hindi

PDF Nameकनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotram)
Written ByShankaracharya
No. of Pages2
PDF Size1MB
LanguageHindi
CategoryHindu Book, Spirituality
Last UpdatedFebruary 7, 2024

कनकधारा स्तोत्र (Kanakadhara Stotram) शंकराचार्य – गीता प्रेस PDF In Hindi

कनकधारा स्तोत्र देवी लक्ष्मी को समर्पित एक स्तोत्र है जिसे आदि शंकराचार्य द्वारा लिखा गया था। यह स्तोत्र देवी लक्ष्मी की सुंदरता, दया और उदारता का वर्णन करता है। यह स्तोत्र देवी लक्ष्मी से धन, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद मांगने के लिए भी एक प्रार्थना है।

कनकधारा स्तोत्र पढ़ने का सबसे अच्छा समय शुभ मुहूर्त के दौरान होता है जैसे कि दिवाली, धनतेरस और अक्षय तृतीया। हालाँकि, आप इसे किसी भी दिन या किसी भी समय पर पढ़ सकते हैं।

कनकधारा स्तोत्र पढ़ने के कईं लाभ है। यह देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने और उन्हें प्रसन्न करने में मदद करता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से धन और समृद्धि आकर्षित होती है और बुरी शक्तियों और नकारात्मकता से बचने में भी मदद मिलती है।

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आदि शंकराचार्य द्वारा रचित कनकधारा स्तोत्र – अर्थ सहित (हिंदी)


अर्थ – जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल-तरु का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो प्रकाश श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ता रहता है तथा जिसमें संपूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, संपूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की वह दृष्टि मेरे लिए मंगलदायी हो।


अर्थ – जैसे भ्रमरी महान कमल दल पर मंडराती रहती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बराबर प्रेमपूर्वक जाती है और लज्जा के कारण लौट आती है। समुद्र कन्या लक्ष्मी की वह मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन संपत्ति प्रदान करें।


अर्थ – जो देवताओ के स्वामी इंद्र को के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मधुहंता नाम के दैत्य के शत्रु भगवान विष्णु को भी आप आधिकाधिक आनंद प्रदान करने वाली है, नीलकमल जिसका सहोदर है अर्थात भाई है, उन लक्ष्मीजी के अर्ध खुले हुए नेत्रों की दृश्टि किंचित क्षण के लिए मुझ पर पड़े।


अर्थ – जिसकी पुतली एवं भौहे काम के वशीभूत हो अर्धविकसित एकटक आँखों से देखनेवाले आनंद सत्चिदानन्द मुकुंद भगवान को अपने निकट पाकर किंचित तिरछी हो जाती हो, ऐसे शेष पर शयन करने वाले भगवान नारायण की अर्द्धांगिनी श्रीमहालक्ष्मीजी के नेत्र हमें धन-संपत्ति प्रदान करे।


अर्थ – जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि-मंडित वक्षस्थल में इंद्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करने वाली है, वह कमल-कुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।


अर्थ – जिस तरह से मेघो की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार मधु-कैटभ के शत्रु भगवान विष्णु के काली मेघपंक्ति की तरह सुमनोहर वक्षस्थल पर आप एक विद्युत के समान देदीप्यमान होती हो, जिन्होंने अपने अविर्भाव से भृगुवंश को आनंदित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी है वो भगवती लक्ष्मी मुझे कल्याण प्रदान करे।


अर्थ – समुद्रकन्या कमला की वह मन्द, अलस, मन्थर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझ पर पड़े।


अर्थ – भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्र रूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्म (धनागम विरोधी अशुभ प्रारब्ध) रूपी धाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद रूपी धर्मजन्य ताप से पीड़ित मुझ दीन रूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करें।


अर्थ – विशिष्ट बुद्धिवाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दयादृष्टि के प्रभाव से स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं पद्मासना पद्मा की वह विकसित कमल गर्भ के समान कान्तिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे।


अर्थ – जो माँ भगवती श्री सृष्टिक्रीड़ा में अवसर अनुसार वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूप में विराजमान होती है, पालनक्रीड़ा के समय लक्ष्मी के रूप में विष्णु की पत्नी के विराजमान होती है, प्रलयक्रीड़ा के समय शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखर वल्लभा पार्वती (रूद्रशक्ति) भगवान शंकर की पत्नी के रूप में विद्यमान होती है, उन त्रिलोक के एकमात्र गुरु पालनहार विष्णु की नित्य यौवना प्रेमिका भगवती लक्ष्मी को मेरा सम्पूर्ण नमस्कार है।


अर्थ – हे माता ! शुभ कर्मों का फल देनेवाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिन्धुरूप रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमलवन में निवास करनेवाली शक्तिस्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टि को नमस्कार है।


अर्थ – कमल वदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिंधु सभ्यता श्रीदेवी को नमस्कार है। चंद्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है।


अर्थ – सोने के कमलासन पर बैठनेवाली, भूमण्डल नायिका, देवताओ पर दयाकरनेवाली, शाङ्घायुध विष्णु की वल्लभा शक्ति को नमस्कार है।


अर्थ – भगवान् विष्णु के वक्षःस्थल में निवास करनेवाली देवी, कमल के आसनवाली, दामोदर प्रिय लक्ष्मी, आपको मेरा नमस्कार है।


अर्थ – भगवान् विष्णु की कान्ता, कमल के जैसे नेत्रोंवाली, त्रैलोक्य को उत्पन्न करने वाली, देवताओ के द्वारा पूजित, नन्दात्मज की वल्लभा ऐसी श्रीलक्ष्मीजी को मेरा नमस्कार है।


अर्थ – कमल सदृश नेत्रों वाली माननीय मां! आपके चरणों में किए गए प्रणाम संपत्ति प्रदान करने वाले, संपूर्ण इंद्रियों को आनंद देने वाले, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत हैं, वे सदा मुझे ही अवलम्बन दें। मुझे ही आपकी चरण वंदना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे।


अर्थ – जिनके कृपा कटाक्ष के लिए की गई उपासना उपासक के लिए संपूर्ण मनोरथों और संपत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मी देवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूं।


अर्थ – हे भगवती नारायण की पत्नी आप कमल में निवास करने वाली है, आप के हाथो में नीलकमल शोभायमान है आप श्वेत वस्त्र, गंध और माला आदि से सुशोभित है, आपकी झांकी बड़ी मनोहर है, अद्वितीय है, हे त्रिभुवन के ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली आप मुझ पर भी प्रसन्न हो जाईये।


अर्थ – दिग्गजों द्वारा स्वर्ण कलश के मुख से गिराए गए, आकाशगंगा के स्वच्छ और मनोहर जल से जिन भगवान के श्रीअंगो का अभिषेक (स्नान) होता है, उस समस्त लोको के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी, समुद्र तनया (क्षीरसागर पुत्री), जगतजननी भगवती लक्ष्मी को मै प्रातःकाल नमस्कार करता हू ।


अर्थ – कमल नयन केशव की कमनीय कामिनी कमले! मैं अकिंचन (दीन-हीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूं, अतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूं। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरह तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।


अर्थ – जो मनुष्य इन स्तु‍तियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन-जननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभावों को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।


अर्थ – यह उत्तम स्तोत्र जो आद्यगुरु शंकराचार्य विरचित स्तोत्र का (कनकधारा) का पाठ तीनो कालो में (प्रातःकाल मध्याह्नकाल-सायंकाल) करता है वो मनुष्य या साधक कुबेर के समान धनवान हो जाता है।


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