गणेश अथर्वशीर्ष गीता प्रेस पीडीऍफ़ | Ganpati Atharvashirsha Geeta Press Gorakhpur PDF

PDF Nameगणपति अथर्वशीर्ष (Ganapati Atharvashirsha)
Written Byअज्ञात
No. of Pages35
PDF Size3MB
Languageहिंदी
CategoryHindu Book, Spirituality
Last UpdatedJuly 09, 2024

अर्थ: हे गणपति, आपको नमस्कार। आप ही प्रत्यक्ष रूप में तत्त्व हैं। आप ही एकमात्र कर्ता (निर्माता) हैं। आप ही एकमात्र धर्ता (पालनहार) हैं। आप ही एकमात्र हर्ता (संहारक) हैं। आप ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड हैं। आप ही नित्य आत्मा हैं।

अर्थ: मैं ऋत (सत्य) बोलता हूं। मैं सत्य बोलता हूं। आप मेरी रक्षा करें। वक्ता की रक्षा करें। श्रोता की रक्षा करें। दाता की रक्षा करें। धर्ता की रक्षा करें। शिष्य की रक्षा करें। आप पिछली दिशा से रक्षा करें। पूर्व दिशा से रक्षा करें। उत्तर दिशा से रक्षा करें। दक्षिण दिशा से रक्षा करें। ऊर्ध्व दिशा से रक्षा करें। अधर दिशा से रक्षा करें। सभी दिशाओं से मेरी रक्षा करें।

अर्थ: आप वाणी (बोलने) के रूप हैं। आप ज्ञान के रूप हैं। आप आनंद के रूप हैं। आप ब्रह्म के रूप हैं। आप सच्चिदानंद (सत्य, चित, आनंद) के रूप हैं। आप प्रत्यक्ष ब्रह्म हैं। आप ज्ञान और विज्ञान के रूप हैं।

अर्थ: यह सारा जगत आपसे उत्पन्न होता है। यह सारा जगत आपसे स्थिर रहता है। यह सारा जगत आप में लीन हो जाता है। यह सारा जगत आप में पुनः आता है। आप पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश हैं। आप चार वाक (वाणी) पद हैं।

अर्थ: आप तीन गुणों (सत्व, रज, तम) से परे हैं। आप तीन अवस्थाओं (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति) से परे हैं। आप तीन देहों (स्थूल, सूक्ष्म, कारण) से परे हैं। आप तीन कालों (भूत, भविष्य, वर्तमान) से परे हैं। आप हमेशा मूलाधार चक्र में स्थित हैं।

अर्थ: आप तीन शक्तियों (इच्छा, ज्ञान, क्रिया) के स्वरूप हैं। योगीजन आपको नित्य ध्यान करते हैं। आप ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, इंद्र, अग्नि, वायु, सूर्य और चंद्रमा हैं। आप भू, भुवः, और स्वः लोकों के ब्रह्मा हैं।

अर्थ: गण (ग) की ध्वनि को पहले उच्चारित करें, इसके बाद वर्ण (अ) का उच्चारण करें। अनुस्वार (ँ) को बाद में उच्चारित करें। अर्धचंद्र (ङ) से सज्जित करें। यह आपका मंत्र स्वरूप है। ग का पूर्वरूप है। अ का मध्यरूप है। अनुस्वार (ँ) का अंतिम रूप है। बिंदु (।) का उत्तम रूप है। नाद (ध्वनि) का संधान है। यह गणेशविद्या है। गणक ऋषि हैं। निचृद गायत्री छंद है। गणपति देवता हैं। ॐ गं गणपतये नमः।

अर्थ: हम एकदंत का ध्यान करते हैं, वक्रतुण्ड का ध्यान करते हैं। वह दंती (गणपति) हमें प्रज्वलित करें।

अर्थ: एकदंत, चार हाथों वाले, पाश और अंकुश धारण करने वाले, दंती और वरद (वर देने वाले) हाथों वाले, मूषकध्वज (मूषक वाहन वाले) हैं। रक्तवर्ण, लंबोदर, बड़े कान वाले, रक्तवस्त्र धारण करने वाले हैं। उनके अंगों को रक्तगंध से अभिषिक्त किया गया है और वे रक्तपुष्पों से पूजित हैं।

अर्थ: भक्तों पर कृपा करने वाले, जगत के कारण, अच्युत (जिसका कभी नाश नहीं होता), सृष्टि के प्रारंभ में प्रकट होने वाले देव हैं।

अर्थ: योगीजन योग से, ध्यानी ध्यान से, और मूर्खजन मूर्खता से (गणेश के पास) पहुँचते हैं। वे शोकहीन नहीं होते। यह नर (मानव) सभी बंधनों को समाप्त करता है। यह गणेश्वर हैं।

अर्थ: ॐ नमः शिवाय।

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