PDF Name | गणपति अथर्वशीर्ष (Ganapati Atharvashirsha) |
Written By | अज्ञात |
No. of Pages | 35 |
PDF Size | 3MB |
Language | हिंदी |
Category | Hindu Book, Spirituality |
Last Updated | July 09, 2024 |
ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।
त्वं साक्षाद् आत्माऽसि नित्यम्।
अर्थ: हे गणपति, आपको नमस्कार। आप ही प्रत्यक्ष रूप में तत्त्व हैं। आप ही एकमात्र कर्ता (निर्माता) हैं। आप ही एकमात्र धर्ता (पालनहार) हैं। आप ही एकमात्र हर्ता (संहारक) हैं। आप ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड हैं। आप ही नित्य आत्मा हैं।
ॠतं वच्मि। सत्यं वच्मि।
अव त्वं माम्। अव वक्तारम्।
अव श्रोतारम्। अव दातारम्।
अव धातारम्। अवानूचानमव शिष्यम्।
अव पश्चातात्। अव पुरस्तात्।
अवोत्तरात्तात्। अव दक्षिणात्तात्।
अव चोध्वात्तात्। अवाधरात्तात्।
सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात्।
अर्थ: मैं ऋत (सत्य) बोलता हूं। मैं सत्य बोलता हूं। आप मेरी रक्षा करें। वक्ता की रक्षा करें। श्रोता की रक्षा करें। दाता की रक्षा करें। धर्ता की रक्षा करें। शिष्य की रक्षा करें। आप पिछली दिशा से रक्षा करें। पूर्व दिशा से रक्षा करें। उत्तर दिशा से रक्षा करें। दक्षिण दिशा से रक्षा करें। ऊर्ध्व दिशा से रक्षा करें। अधर दिशा से रक्षा करें। सभी दिशाओं से मेरी रक्षा करें।
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः।
त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः।
त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।
अर्थ: आप वाणी (बोलने) के रूप हैं। आप ज्ञान के रूप हैं। आप आनंद के रूप हैं। आप ब्रह्म के रूप हैं। आप सच्चिदानंद (सत्य, चित, आनंद) के रूप हैं। आप प्रत्यक्ष ब्रह्म हैं। आप ज्ञान और विज्ञान के रूप हैं।
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः।
त्वं चत्वारि वाक् पदानि।
अर्थ: यह सारा जगत आपसे उत्पन्न होता है। यह सारा जगत आपसे स्थिर रहता है। यह सारा जगत आप में लीन हो जाता है। यह सारा जगत आप में पुनः आता है। आप पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश हैं। आप चार वाक (वाणी) पद हैं।
त्वं गुणत्रयातीतः।
त्वं अवस्थात्रयातीतः।
त्वं देहत्रयातीतः।
त्वं कालत्रयातीतः।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम्।
अर्थ: आप तीन गुणों (सत्व, रज, तम) से परे हैं। आप तीन अवस्थाओं (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति) से परे हैं। आप तीन देहों (स्थूल, सूक्ष्म, कारण) से परे हैं। आप तीन कालों (भूत, भविष्य, वर्तमान) से परे हैं। आप हमेशा मूलाधार चक्र में स्थित हैं।
त्वं शक्तित्रयात्मकः।
त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम्।
त्वं ब्रह्मास्त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं वायुः।
त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रह्मा भूर्भुवः स्वरोम्॥
अर्थ: आप तीन शक्तियों (इच्छा, ज्ञान, क्रिया) के स्वरूप हैं। योगीजन आपको नित्य ध्यान करते हैं। आप ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, इंद्र, अग्नि, वायु, सूर्य और चंद्रमा हैं। आप भू, भुवः, और स्वः लोकों के ब्रह्मा हैं।
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादींस्तदनन्तरम्।
अनुस्वारः परतरः।
अर्धेन्दुलसितम्।
तारेण ऋद्धम्।
एतत्तव मनुस्वरूपम्।
गकारः पूर्वरूपम्।
अकारो मध्यमरूपम्।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपम्।
बिन्दुरुत्तररूपम्।
नादः संधानम्।
सँहिता सन्धिः।
सैषा गणेशविद्या।
गणक ऋषिः।
निचृद्गायत्रीच्छन्दः।
गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नमः॥
अर्थ: गण (ग) की ध्वनि को पहले उच्चारित करें, इसके बाद वर्ण (अ) का उच्चारण करें। अनुस्वार (ँ) को बाद में उच्चारित करें। अर्धचंद्र (ङ) से सज्जित करें। यह आपका मंत्र स्वरूप है। ग का पूर्वरूप है। अ का मध्यरूप है। अनुस्वार (ँ) का अंतिम रूप है। बिंदु (।) का उत्तम रूप है। नाद (ध्वनि) का संधान है। यह गणेशविद्या है। गणक ऋषि हैं। निचृद गायत्री छंद है। गणपति देवता हैं। ॐ गं गणपतये नमः।
एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥
अर्थ: हम एकदंत का ध्यान करते हैं, वक्रतुण्ड का ध्यान करते हैं। वह दंती (गणपति) हमें प्रज्वलित करें।
एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर् बिभ्राणं मूषकध्वजम्।
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैः सुपूजितम्।
अर्थ: एकदंत, चार हाथों वाले, पाश और अंकुश धारण करने वाले, दंती और वरद (वर देने वाले) हाथों वाले, मूषकध्वज (मूषक वाहन वाले) हैं। रक्तवर्ण, लंबोदर, बड़े कान वाले, रक्तवस्त्र धारण करने वाले हैं। उनके अंगों को रक्तगंध से अभिषिक्त किया गया है और वे रक्तपुष्पों से पूजित हैं।
भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्राकृतः प्राकृतैः सह।
अर्थ: भक्तों पर कृपा करने वाले, जगत के कारण, अच्युत (जिसका कभी नाश नहीं होता), सृष्टि के प्रारंभ में प्रकट होने वाले देव हैं।
योगैर्योगिनो गच्छन्ति ध्यानिनो ध्यायतः परम्।
मूढास्त्वमासानासाद्य सन्ति न वीतशोकदाः॥
नरो वीहात्यथ सर्वमञ्जनं।
स गणेश्वरः॥
अर्थ: योगीजन योग से, ध्यानी ध्यान से, और मूर्खजन मूर्खता से (गणेश के पास) पहुँचते हैं। वे शोकहीन नहीं होते। यह नर (मानव) सभी बंधनों को समाप्त करता है। यह गणेश्वर हैं।
॥ ॐ नमः शिवाय ॥
अर्थ: ॐ नमः शिवाय।